Tuesday, August 6, 2013

तिजोरी में जरूर रखना चाहिए पूजा की सुपारी क्योंकि....


कहते हैं पूजा से मन को शांति व एकाग्रता मिलती है। इसीलिए लोग अपने घर में अक्सर किसी त्यौहार या विशेष उपलक्ष्य पर पूजन का आयोजन करते हैं। पूजन के समय सर्वप्रथम श्री गणेश का पूजन किया जाता है। गणेशजी की मुर्ति की स्थापना के साथ ही पूजा की सुपारी में भी गणेश जी का आवाह्न किया जाता है क्योंकि पूजन के समय सबसे पहले गौरी व गणेश की स्थापना जरूरी मानी जाती है।
गणेशजी का आवाह्न पूजा की सुपारी में किया जाता है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार पूजा की सुपारी को पूर्ण फल माना जाता है। पूजा की सुपारी पूर्ण व अखंडित होती है। इसीलिए इसको पूजा के समय गौरी-गणेश का रूप मानकर उस पर जनेऊ चढ़ाई जाती है।
बाद में उस पूजा की सुपारी का क्या करें अधिकतर लोगों के मन में यही दुविधा रहती है? कहा जाता है कि पूजा सुपारी को पूजन के बाद तिजोरी में रखना चाहिए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार यह मान्यता है कि जहां गणेशजी यानी बुद्धि के स्वामी का निवास होता है वहीं लक्ष्मी का निवास होता है। इसीलिए पूजा सुपारी को पूजन के बाद तिजोरी में रखना चाहिए क्योंकि इससे घर में सुख-समृद्धि बढऩे के साथ ही घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। 

कुंडली से जानें, क्यों होती है किसी की अकाल मृत्यु?

मौत का नाम सुनते ही शरीर में अचानक सिहरन दौड़ जाती है। मृत्यु एक अटल सत्य है, जिसे कोई बदल नहीं सकता। कब, किस कारण से, किस की मौत होगी, यह कोई भी नहीं कह सकता। कुछ लोगों की अल्पायु में ही मौत हो जाती है। ऐसी मौत को अकाल मृत्यु कहते हैं। जातक की कुंडली के आधार पर अकाल मृत्यु के संबंध में जाना जा सकता है।
1- लग्नेश तथा मंगल की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो जातक को शस्त्र से घाव होता है। इसी प्रकार का फल इन भावों में शनि और मंगल के होने से मिलता है।
2- यदि मंगल जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव, सप्तम भाव अथवा अष्टम भाव में स्थित हो और उस पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु आग से होती है।
3- लग्न, द्वितीय भाव तथा बारहवें भाव में क्रूर ग्रह की स्थिति हत्या का कारण बनती है।
4- दशम भाव की नवांश राशि का स्वामी राहु अथवा केतु के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु अस्वभाविक होती है।
5- यदि जातक की कुंडली के लग्न में मंगल स्थित हो और उस पर सूर्य या शनि की अथवा दोनों की दृष्टि हो तो दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका रहती है।
6- राहु-मंगल की युति अथवा दोनों का समसप्तक होकर एक-दूसरे से दृष्ट होना भी दुर्घटना का कारण हो सकता है।
7- षष्ठ भाव का स्वामी पापग्रह से युक्त होकर षष्ठ अथवा अष्टम भाव में हो तो दुर्घटना होने का भय रहता है।